अपनी उत्तम कल्पनाओं को चरितार्थ कीजिए
जिधर दृष्टि डालिए, प्रत्येक में कल्पना का ही निवास मिलेगा। इसलिए कल्पना करना व्यर्थ नहीं है, बल्कि कल्पना करना जीवन की निशानी है, बशर्ते कि तुम्हारी कल्पनाओं में तुम्हारे जीवन का प्राण भरा हो। निष्प्राण कल्पना जीवनी शक्ति को बढ़ाती नहीं बल्कि नष्ट कर देती है, मनुष्य को निष्प्राण बना देती है, इसलिए हमें सजीव कल्पना, सप्राण कल्पना करना आना चाहिए।
'मनुष्य' नाम की इस बड़ी भारी मशीनरी में चारों ओर प्राण ही प्राण भरा हुआ है। चारों ओर जीवन ही जीवन लहरें ले रहा है और वही तो कल्पना के रूप में बाहर निकल कर अपने अनेक रूप, आकृति- प्रकृति बनाना चाहता है। वह अपने जीवन को, अपनी सत्ता को, अपनी चेतना को चारों ओर बिखेर देना चाहता है। इसीलिये तो कल्पना करता है, लेकिन उसकी सीमा जब कल्पना तक ही रह जाती है और अपनी आत्मा को, प्राण को उसमें नहीं रहने देती, तब वह निस्तेज हो जाता है।
इसलिए तेजस्वी बनना हो तो जो कुछ तुम चाहते हो, जो भी तुमने अपने मन में सोच रखा है और जैसे भी तुमने अपने हवाई किले का ढांचा तैयार किया हो, उसे इस पृथ्वी पर लाने के लिए दृढ संकल्प हो जाओ। जब तुम कल्पना कर सकते हो तो कौन सी शक्ति ऐसी है जो उसके पृथ्वी पर उतरने में बाधा डाले?
(अखंड ज्योति - दिसंबर १९४९, पृष्ठ- ५)
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